शनिवार, 3 जुलाई 2010

बायोमैट्रिक्स

 बायोमैट्रिक्स


जैविक आंकड़ों एंव तथ्यों की माप और विश्लेषण के विज्ञान-प्रौद्योगिकी को बायोमैट्रिक्स कहा जाता है। बायोमैट्रिक्स दो ग्रीक शब्दों बायोस (जिंदगी) और मैट्रोन (मापन) से मिलकर बना है। नेटवर्किंग, संचार और गत्यात्मकता में आई तेजी से किसी व्यक्ति की पहचान की जांच पड़ताल करने के विश्वसनीय तरीकों की आवश्यकता बढ़ गई है। एक जमाना हुआ करता था, जब व्यक्तियों की पहचान उनके फोटो, हस्ताक्षर, अंगूठे और अंगुलियों के निशानों से की जाती रही है, लेकिन इनमें हेरा-फेरी होने लगी, इसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने जैविक विधि से इस समस्या का समाधान करने का तरीका बायोमैट्रिक्स के रूप में खोज लिया है। वेनेजुएला में आम चुनावों के दौरान डबल वोटिंग को रोकने के लिए बायोमैट्रिक कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है।

क्यों हैं विश्वसनीय बायोमैट्रिक्स

-प्रत्येक व्यक्ति में पाई जाने वाली बायोमैट्रिक्स विशिष्ट होती है।

-बायोमैट्रिक खोजों को न तो भुलाया जा सकता है और न ही इनमें जालसाजी की जा सकती है। अगर किसी दुर्घटनावश अंग विकृत हो जाए, तभी इसमें बदलाव संभव है। यह चिन्ह व्यक्ति में स्थाई प्रकृति के होते हैं।

-आइडेंटी बरकरार रखने के लिए एकत्रित बायोमैट्रिक डाटा को पहले इनक्रिप्ट किया जाता है, ताकि उसका क्लोन न बनाया जा सकें।

-तकनीक को पासवर्ड, कार्ड के साथ मिलाकर प्रयुक्त किया जा सकता है।

कैसे होती है पहचान

इसमें व्यक्ति के अंगूठे के निशान, अंगुलियों, आंखों की पुतलियों, आवाज एवं डीएनए के आधार पर उसे पहचाना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की यह चीजें यूनिक होती है। आस्ट्रेलिया, ब्राजील, जर्मनी, इराक, जापान, नाईजीरिया, इजराइल में इस तकनीक का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। जहां जापान में एटीएम मशीनें हाथों की नसों के इंप्रेशन पर खुलती है, तो वहीं ब्राजील में आइडेंटिटी कार्ड में इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। आस्ट्रेलिया में जाने वाले पर्यटकों को बायोमैट्रिक प्रमाण जमा करना होता है। आस्ट्रेलिया विश्व में पहला ऐसा देश था, जिसने बायोमैट्रिक्स प्राइवेसी कोड लागू किया। ब्राजील में भी लॉग आईडी कार्ड का चलन है। ब्राजील के प्रत्येक राज्य को इस बात की इजाजत है कि वह अपना आईडी कार्ड छाप सकें, लेकिन उनका लेआउट और डाटा हमेशा समान रहता है।

बायोमैट्रिक के प्रकार

बायोमैट्रिक को मुख्यत: दो गुणधर्मो के आधार पर बांटा जाता है, पहला उसके मनोवैज्ञानिक और दूसरा व्यावहारिक। मनोवैज्ञानिक आधार में व्यक्ति के शरीर के अंगों की रचना को ध्यान में रखा जाता है, मसलन उंगलियों की संरचना, अंगूठे के निशान। वहीं व्यावहारिक में व्यक्ति के व्यवहार को आधार माना जाता है। इसका मापन व्यक्ति के हस्ताक्षर, उसकी आवाज आधार पर करते हैं।
वर्तमान में व्यक्ति की जांच पड़ताल हेतु दो विधियों का प्रयोग किया जाता है
धारक-आधारित : व्यक्ति के पास मौजूदा सिक्योरिटी कार्ड, क्रेडिट कार्ड। इनमें आसानी से फेरबदल किया जा सकता है। और क्रेडिट कार्ड की जालसाजी की घटनाएं तो आम बात हो गई है।
ज्ञान आधारित: टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रयोग से किसी का पासवर्ड तोड़ना अब करिश्माई बात नहीं रही। साथ ही लंबे समय तक इस्तेमाल न करने पर पासवर्ड भूल जाने की भी समस्या रहती है।
ऐसे में व्यक्ति की इन्हीं कमजोरियों का निदान करने में बायोमैट्रिक्स महत्वपूर्ण है। बायोमैट्रिक्स में शरीर और उसके अंग को सुरक्षा का पैमाना बनाया जाता है। इसके अलावा सुगंध, रैटिना, हाथों की नसों के आधार पर भी इसे जाना जा सकता है। तकरीबन सभी बोयामैट्रिक सिस्टम में मुख्यत: तीन चरण होते हैं। सबसे पहले बायोमैट्रिक सिस्टम में नामांकन करने पर नामांकन करता है। दूसरे चरण में इन चीजों को स्टोर करता है। इसके बाद तुलना की जाती है। वर्तमान में बात करने के तरीके, हाथ की नसों, रैटिना, डीएनए के आधार पर भी बायोमैट्रिक कार्ड बनाए जाते है।

मेटल डिटेक्टर

आपने अकसर एयरपोर्ट पर, सिनेमाघरों में, मैट्रो स्टेशनों में सामान की तलाशी करते वक्त मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल होते देखा होगा। ऐसे में आपके मन में प्रश्न जरूर उठता होगा कि आखिर बैग के अंदर से यह इस बात का पता कैसे लगा लेते हैं कि कोई सामान अंदर हैं या नहीं।
मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल धातु से जुड़े सामानों का पता लगाने में किया जाता है। इसके अलावा लैंडमाइन का पता लगाने, हथियारों का पता लगाने जैसे कई कामों में इसका प्रयोग किया जाता है। मेटल डिटेक्टर में एक दोलक होता है, जो कि अल्टरनेटिंग करेंट उत्पन्न करता है, जो कि कुंडली में से प्रवाहित होकर अल्टरनेटिंग चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। इसमें एक कुंडली का इस्तेमाल चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए किया जाता है, चुंबकीय पदार्थ के होने पर चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इसे मापा जाता है। इसमें लगे माइक्रोप्रोसेर यह पता लगाते हैं कि वह कौन सी धातु है। मेटल डिटेक्टर वैद्युत चुंबकत्व के सिद्वांत पर काम करते हैं। अलग- अलग कामों के इस्तेमाल के लिहाज से मेटल डिटेक्टरों की संवेदनशीलता अलग बनाई जाती है। मेटल डिटेक्टर बालू, मिट्टी, लकड़ी आदि के भीतर छिपी हुई धातुओं की भी पहचान कर सकते हैं। सुरक्षा, आर्कियोलॉजी, सिक्योरिटी स्क्रीनिंग, ट्रेजर हंटिंग के लिहाज से काफी उपयोगी है।

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